‘ॐ पूर्णभदः पूर्णामिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥’
अर्थात् हमें प्रकृति से उतना ही ग्रहण करना चाहिए, जितना की आवश्यक है। प्रकृति को पूर्ण रूप से नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। हमारे बड़े बुजुर्ग इसी भावना से बिना पौधों को नुक़सान पहुंचाए तुलसी की पत्तियां ले लेते हैं। कुछ ऐसा ही संदेश वेदों में भी दिया गया है।
पर्यावरण यानि ऐसा आवरण जो हमें चारों तरफ से ढंक कर रखता है, जो हमसे जुड़ा है और हम भी उससे जुड़े हैं और हम चाहें तो भी खुद को इससे अलग नहीं कर सकते हैं। प्रकृति और पर्यावरण एक दूसरे का अभिन्न हिस्सा हैं। पर्यावरण और प्रकृति हमें बहुत कुछ देते हैं, लेकिन बदले में हम उन्हें क्या दे रहे हैं? हम अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए पर्यावरण और इसकी अमूल्य संपदा का हनन करने पर लगे हुए हैं। हमारे द्वारा कि गई हर अच्छी और बुरी गतिविधि का असर पर्यावरण पर पड़ता है। इस पृथ्वी पर मानव को सबसे अधिक बुद्धिशील प्राणी माना गया है। लेकिन वह सबसे खतरनाक प्राणी की श्रेणी को प्राप्त करता जा रहा है। पर्यावरण के संरक्षण की जिम्मेदारी भी मनुष्य की ही बनती है।
प्रकृति का संरक्षण करना मतलब उसका पूजन करने के समान है। हमारे देश में पर्वत, नदी, वायु, अग्नि, जल, ग्रह नक्षत्र, पेड़-पौधे आदि मनुष्य की जिंदगी से जुड़े हुए हैं। हरे भरे लहलहाते पेड़, आसमान में कलरव करते और चहचहाते पक्षी, जंगल में दौड़ते जीव जंतु, समन्दर में आती और जाती हुई लहरें, कल-कल करके बहती हुई नदियां आदि प्रकृति की अमूल्य कृतियां इस धरा पर मनोरम अहसास करवाती हैं। समय के साथ मनुष्य नित नए अविष्कार कर रहा है। परन्तु उसका हर्जाना भुगत रहे हैं, ये पर्यावरण और इसमें रहने वाले अबोध जीव। हम सभी को पर्यावरण और प्रकृति का संरक्षण करने के लिए जागरूक होना पड़ेगा, अन्यथा पर्यावरण के साथ सारी मानव जाति का भी विनाश हो जाएगा।
विभिन्न प्रकार के प्रदूषण इस समय पृथ्वी पर काबिज हैं। इन सभी से पार पाने में इको फ़्रेंडली यानि की पर्यावरण हितैशी उत्पादों व तकनीकों का प्रयोग अत्यंत लाभदायक है। इनमें से कुछ तकनीक व उपाय इस प्रकार हैं:-
• पौधरोपन के द्वारा:- अकसर ऐसा बार- बार कहा जाता है, पौधे लगाएं जीवन बचाएं। क्योंकि पर्यावरण संरक्षण में पेड़ पौधों का निरंतर योगदान रहा है। शुद्ध वायु, भरपूर मात्र में ऑक्सीजन, भूमि प्रदूषण रोकथाम, विशाल मात्रा में धूँए को सोखने का कार्य, असंख्य जीवों को शरण देने का कार्य, शाकाहार का एकमात्र स्रोत आदि पेड़ पौधों के इस पृथ्वी पर अनगिनत योगदान हैं। इसलिए हमें चाहिए कि घर की खाली जमीन, बालकनी, छत पर पौधे लगायें; लोगों को बर्थडे, त्योहार पर पौधे उपहार स्वरूप भेंट करें, महंगे एयर प्युरीफायर की बजाय हवा साफ करने वाले पौधे लगायें।
• जैविक खाद :- हम अपने गमलों, जमीन में लगे पौधों, खेतों आदि में ऑर्गैनिक खाद, गोबर खाद या जैविक खाद का उपयोग करेंगे तो केमिकल से आजादी भी पाएंगे और शुद्ध भोजन व पर्यावरण संरक्षण में साथ देंगे। हम घर से निकलने वाला गीला कचरा किसी जगह इकट्ठा कर या जमीन में दबा कर जैविक खाद में तब्दीलीकरण कर प्रयोग में ला सकते हैं।
• दैनिक दिनचर्या में जैविक उत्पाद का प्रयोग:- हमें चाहिए कि हम कपड़े के बने झोले-थैले लेकर निकलें। कागज़, गत्ते, कपड़े जैसी जैविक वस्तु से बनी वस्तुएं सफाई आदि के कार्य में प्रयोग करें। साज सज्जा में पर्यावरण हितैषी वस्तुओं का प्रयोग हमारे द्वारा हो। बांस, कांच व स्टील आदि धातु से बने बर्तनों का प्रयोग, प्लास्टिक बोतल की जगह कांच, स्टील, बांस या तांबे की बॉटल का प्रयोग करें, प्लास्टिक कप, प्लेट की जगह मिट्टी के कुल्हड़, कागज या पत्ते के बने प्लेट अपनायें।
• सफर के दौरान पर्यावरण हितैषी आदतों को अपनाना:- आस-पास जाने के लिए बाइक की बजाय साइकिल से या पैदल जायें और विद्युत वाहनों का प्रयोग करने की कोशिश करें। खुद की गाड़ी के बजाय ट्रेन, बस, मेट्रो, शेयर कैब आदि सार्वजनिक वाहन से यात्रा करें।
• प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों व उत्पादों का उपयोग:- प्राकृतिक रोशनी का आनंद लें, खिड़की से पर्दे हटायें, दिन में सूरज की रोशनी से काम चलायें। वायु व जल से संचालित उपकरणों का प्रयोग करें। हम ऐसे घर बनाएं जो हवादार हों और जहां सूर्य की रोशनी पर्याप्त मात्र में आती हो।
• सौर ऊर्जा का प्रयोग:- सौर ऊर्जा से संचालित उपकरण व सोलर पैनल लगवायें, सोलर कुकर में खाना बनायें। सौर ऊर्जा प्रकृति की देन है और हमें निशुल्क प्राप्त होती है और साथ ही यह प्रदूषण रहित है।
• जल का सदुपयोग:- पर्यावरण संरक्षण के लिए जल का सदुपयोग अति आवश्यक है। जल है तो कल है, जल ही जीवन है; इसे सिर्फ सूनने या बोलने मात्र तक ही सीमित न रखें, बल्कि अपने जीवन में भी उतारें। खुले नल को बंद करें, शॉवर लेने की बजाय बाल्टी से नहायें, जल कपड़ा धोने से बचे पानी को पौधों में डाल दें या जमीन धोएं, मंजन या शेविंग करते समय मग में पानी लें, नल न चलायें। नदियों के पानी को जहरीले रसायनों की चपेट में आने से हमें बचाना होगा और पर्यावरण हितैषी उत्पादों का प्रयोग करना होगा। नदी, नालों में गंदगी डालने से हमें बचना होगा।
• विद्युत ऊर्जा का व्यवस्थित प्रयोग:- कमरे से निकलने पर टीवी, लाइट, पंखा, एसी बंद कर दें। अच्छे 5 स्टार रेटिंग वाले उपकरण खरीदें, लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों का उपयोग करें, बिना उपयोग मोबाईल, लैपटॉप चार्जर को प्लग में न लगे रहने दें। बल्ब की जगह पर सीएफ़एल या एलईडी बल्ब लगायें। इन सभी उपायों से विद्युत ऊर्जा बचेगी और साथ ही हमारे प्राकृतिक स्रोत भी ठीक प्रकार उपयोग होंगे।
• जल का सदुपयोग:- पर्यावरण संरक्षण के लिए जल का सदुपयोग अति आवश्यक है। जल है तो कल है, जल ही जीवन है; इसे सिर्फ सूनने या बोलने मात्र तक ही सीमित न रखें, बल्कि अपने जीवन में भी उतारें। खुले नल को बंद करें, शॉवर लेने की बजाय बाल्टी से नहायें, जल कपड़ा धोने से बचे पानी को पौधों में डाल दें या जमीन धोएं, मंजन या शेविंग करते समय मग में पानी लें, नल न चलायें। नदियों के पानी को जहरीले रसायनों की चपेट में आने से हमें बचाना होगा और पर्यावरण हितैषी उत्पादों का प्रयोग करना होगा। नदी, नालों में गंदगी डालने से हमें बचना होगा।
• विद्युत ऊर्जा का व्यवस्थित प्रयोग:- कमरे से निकलने पर टीवी, लाइट, फैन, एसी बंद कर दें। अच्छी इलेक्ट्रिसिटी सेविंग रेटिंग वाले उपकरण खरीदें, लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों का उपयोग करें, बिना उपयोग मोबाईल, लैपटॉप चार्जर को प्लग में न लगे रहने दें। बल्ब की जगह पर सीएफ़एल या एलईडी बल्ब लगायें। इन सभी उपायों से विद्युत ऊर्जा बचेगी और साथ ही हमारे प्राकृतिक स्रोत भी ठीक प्रकार उपयोग होंगे।
• शाकाहार अपनाकर:- शाकाहारी बनें, मांसाहार का सेवन कम करें या बंद करें। इससे कार्बन फुट्प्रिन्ट भी कां होगा एवं मुर्गी, मछली अन्य खाद्य जीवों के पालन में खर्च होने वाली अत्यधिक ऊर्जा का संरक्षण भी होगा और साथ ही वृक्षारोपण बढ़ेगा।
• उत्पादों के रियूज को अपनाकर :- प्लास्टिक के खाली डब्बों में सामान रखें या पौधे लगायें, पुनर्प्रयोग में लाए जाने वाले सिलिकॉन के थैले का इस्तेमाल करें व अन्य उत्पादों का प्रयोग करें जैसे कि बांस, धातु, लकड़ी आदि।
• रीसाइकल किए जाने वाले उत्पाद का इस्तेमाल :- ऐसे बहुत से उत्पाद हैं जिन्हें रीसाइकल कर प्रयोग में लाया जा सकता है, जैसे रीसाइकल कागज के बने उत्पाद का प्रयोग, साफ सफाई में रीसाइकल हुए कपड़े का प्रयोग। आजकल प्लास्टिक को रीसाइकल कर सड़क आदि निर्माण भी किया जा रहा है। धातु को पिघलाकर दोबारा वस्तुएं बनाई जा रही हैं। इन सभी उपायों को अपनाकर पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है।
• शून्य अपशिष्ट का पालन :- शून्य अपशिष्ट अर्थात किसी भी प्रकार का अवशेष न रहे। इसके लिए हम कृषि उपजात (बाइप्रोडक्ट) को अन्य कार्यों में प्रयोग कर सकते हैं। जैसा कि गेहूं कटने के बाद रह जाने वाले अपशिष्ट को विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे गद्दे आदि बनाने में प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा अतिशुक्ष्मवाद (minimalism) को अपनाना अत्यधिक लाभप्रद है। अगर कुछ भी वस्तु का प्रयोग हो, तो उसका समुचित इस्तेमाल हो।
• नवीनीकरणीय (renewable) संसाधनों का बचाव:- जल, वृक्ष, विभिन्न प्रकार की ऊर्जा, प्राकृतिक स्रोत आदि का इस्तेमाल व्यवस्थित रूप में करना हमारा ध्येय होना चाहिए। जैसे कि कागज के दोनों तरफ प्रिन्ट लें, फालतू प्रिन्ट न करें,। खाद्य पदार्थ की क्षति पर रोकथाम करें। हमें चाहिए कि हम खाने की बर्बादी न करें। खाने की थाली में उतना ही डालें जीतने की आवश्यकता हो।
• रसायन रहित उत्पादों का प्रयोग:- पानी में घुलनशील पदार्थ से बनी पैकिंग का प्रयोग, जैविक प्लास्टिक यानि बेयोप्लास्टिक का प्रयोग, पर्यावरण हितैषी स्याही व कागज का प्रयोग करें। प्राकृतिक, जैविक उत्पादनक इस्तमल करें व रसायनिक चीजों के प्रयोग से बचें।
• पर्यावरण अनुकूल फरनीचर, विद्युत उपकरण का उपयोग:- हमे चाहिए कि घर में ऐसे फर्नीचर व उपकरण लें, जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं एवं प्रदूषण संरक्षण में अपना योगदान दें। प्राकृतिक संसाधनों व उपकरणों का हम प्रयोग करें।
• जैव निम्नीकरणीय (बायोडेग्रेडेबल) उत्पाद का प्रयोग:- पहनने के लिए सूती कपड़ों का उपयोग करें, कचरा डालने के लिए आसानी से नष्ट हो जाने वाली थैली का प्रयोग करें। सिंथेटिक चीजों से बचें। जैविक उत्पादों का इस्तेमाल करें।
• कार्बन फुटप्रिंट कम करके ऊर्जा में बचत:- पर्यावरण को सबसे अधिक डर कार्बन फुटप्रिन्ट का है। बढ़ती तकनीक के साथ ऐसे बहुत से उत्पादों का मानव प्रयोग करने लगा है, जिससे कार्बन फुट्प्रिन्ट बढ़ रहा है। जिससे ग्लोबल वार्मिंग, ग्लेशिअरों के पिघलने आदि की समस्या को हमने न्यौता दिया है। इसलिए हमें इस ओर कदम उठने होंगे, जिससे इनसे निजात पा सकें।
• तापवरोधक भवन का निर्माण (energy efficient room with proper insulation):- कुछ ऐसी पर्यावरण हितैषी तकनीकों को अपनाकर ऐसे मकान का निर्माण किया जा सकता है जो तापवरोधन का काम करें, जैसे मकान में केमिकल वाले पैंट की जगह मिट्टी व कली के उपयोग, इंदौर पौधों का प्रयोग, वर्टिकल व रूफ़टोप गार्ड्निंग जैसे प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कर भवन व ईमारतों का निर्माण किया जा सकता है।
• वैकल्पिक ऊर्जा (Alternative energy) का प्रयोग :- यानि कि व्यर्थ हो जानेवाली ऊष्मा को उपयोग में लाया जा सकता है | गाड़ियों के एग्ज़ॉस्ट पाइप या एयर-कंडिशनर से निकलनेवाली ऊष्मा को कैद करके बिजली बनाई जा सकती है। इस काम में किस प्रकार की मिश्रधातुओं व सामग्री (Alloy material) का उपयोग किया जाना चाहिए इसे लेकर अभी बहुत सी बातें स्पष्ट नहीं हैं लेकिन इसपर काम किया जा रहा है और भविष्य में इसके अच्छे परिणाम की उम्मीद की जा सकती है।
• पानी को नमकरहित बना कर (Desalinization of Sea Water):- दुनिया में ऐसी बहुत सी जगह हैं, जहां पानी बहुत मूल्यवान है। बहुत से क्षेत्र पानी की कमी का संकट झेल रहे हैं। कई जगहों में पानी का खारापन दूर करने के लिए प्लांट लगाए गए हैं लेकिन उनका उपयोग बहुत खर्चीला है । हमें ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी कि धरती में पानी की प्राकृतिक आपूर्ति में कमी न आने पाए। इस दिशा में काम कर रहे लोगों की सहायता करके हम प्रकृति संरक्षण में अपना मूल्यवान योगदान दे सकते हैं।
• महासागरीय ताप ऊर्जा रूपांतरण कर (Ocean Thermal Energy Conversion): - यह एक नई ऊर्जा तकनीक है जिसमें समुद्र के पानी में व्याप्त ऊष्मा को बिजली में बदलने की दिशा में काम किया जा रहा है। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि समुद्र में अनेक स्थानों पर पानी के तापमान में अंतर होता है। समुद्र की ऊपरी सतह गर्म और भीतरी सतहें ठंडी होती हैं। तापमान के इस अंतर से टरबाइनें चलाई जा सकती हैं जो जनरेटर की मदद से बिजली बनाती हैं। यह तकनीक अभी शैशवकाल में है और इसे अधिक सक्षम बनाने के प्रयास जारी हैं।
• 'प्रो-प्लैनेट पीपुल' (P3) मिशन:- इस मिशन की योजना व्यक्तियों का एक वैश्विक नैटवर्क बनाने की है, जो पर्यावरण-अनुकूल जीवन शैली को अपनाने और बढ़ावा देने के लिये, एक साझा प्रतिबद्धता होगी। मिशन - P3 समुदाय के माध्यम से एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का प्रयास करेगा, जिससे पर्यावरण के अनुकूल व टिकाऊ व्यवहार सुदृढ़ हों। इस आन्दोलन के ज़रिये, वर्तमान में प्रचलित, 'उपयोग-और-निपटान' की ग़ैर-ज़िम्मेदार अर्थव्यवस्था को, परिपत्र अर्थव्यवस्था में बदलने की कोशिश की जाएगी, जिससे सावधानीपूर्ण व सतत उपयोग का विस्तार होगा।
वर्तमान में कोई भी पर्यावरण के संरक्षण का महत्व नहीं समझ रहा है। निरंतर प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, जिससे सारी पृथ्वी प्रदूषित हो रही है और मानव सभ्यता का अंत होने को है। इन परिस्थितियों पर विचार करते हुए व निवारण की ओर बढ़ते हुए समय समय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलनों का आयोजन किया जाता रहा है, जिनमें सन् 1972 में स्टॉककहोम सम्मेलन; 1992 में ब्राजील में व 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया। पूर्व में जनसमूह द्वारा पर्यावरण व प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए विभिन्न आंदोलन भी चलाए गए; जिनमें 1973 में चिपको आंदोलन, 1983 में अप्पीको आंदोलन, 1989 में नर्मदा आंदोलन, मुख्यतः रहे।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को विधि (कानून) बनाकर लागू करने के उद्देशय से भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम संसद द्वारा 23 मई 1986 को पारित हुआ और 19 नवंबर 1986 को लागू किया गया।
विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा जारी रिर्पोट के अनुसार वैश्विक जलवायु परिवर्तन से तापमान बढ़ रहा है, जिससे प्रदूषण का स्तर भी अधिक हो गया है। जिस कारण बहुत सी बीमारियाँ विशेषतः हार्ट अटैक, मलेरिया, डेंगू, हैजा, एलर्जी तथा त्वचिय रोग मानव जाती को अपनी चपेट में ले रही हैं। ऐसी परिस्थिति को देखते हुए विश्व स्वास्थ संगठन ने विश्व की सरकारों को अपने स्वास्थ्य बजट में कम से कम 20 प्रतिशत वृद्धि करने की सलाह दी है।
पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के लाभ व्यापक है, जो कि आर्थिक और सामाजिक आयामों में फैले हुए हैं। हरित क्रांति को आगे बढ़ाने में सरकारों, व्यवसाई वर्ग और व्यक्तिगत स्तर पर सभी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सतत विकास व इको फ़्रेंडली विकल्पों को अपनाकर, हम न केवल पर्यावरण व प्रकृति की रक्षा करते हैं बल्कि अपने जीवन की गुणवत्ता को भी बढ़ाते हैं, आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं, और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ, सतत संसार व ब्रह्मांड में पनपने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।