जादुई छड़ी
एक बार की बात है बंगाल के कोलकाता में एक छोटा सा परिवार रहता था। जिसमें 2 छोटी - छोटी बच्चियां थीं व उनके माता पिता। बड़ी का नाम निम्मी था और छोटी का नाम जानिया । जो बड़े वाली थी उसके शौक बड़े ही निराले थे, उसको घूमना बहुत पसंद था । अभी स्कूल की छुट्टियाँ हुए कुछ ही दिन हुए थे की निम्मी घर पर बोर होने लगी ;तभी उसके दिमाग में एक आईडिया आया , क्यों न कहीं घुमंकर आया जाए ।
तभी उसे पापा दिखे , उसे लगा पापा जल्दी मन जाएंगे , इसलिए इन्ही से बात की जाए । निम्मी बोलती है पापा मैं घर पर उक्ता गई हूँ क्यों न कहीं घूम कर आया जाए । पापा ने पूछा कहां जाना चाहोगी ? वो बोली सुंदरबन के जंगल चलें । पापा मान गए । अगले ही दिन जाने का प्लान बन गया । सुबह करीब 6 बजे घर के बाहर सब तैनात खड़े थे । निम्मी व जानिया तो ख़ुशी व उल्लास से भरे हुए थे , सबने रास्ते के लिए सामान भी जुटा लिआ था । साथ ही वहां जंगल में मदद के लिए एक लट्ठी भी रख ली थी । सभी गाड़ी में बैठे, सफर पर चल दिए । जैसे ही थोड़ी दूर पहुंचे जानिया को भूख लग गई । निम्मी को जैसे ही रास्ते में मैक्डोनाल्ड दिखा दोनों वहां जाने की जिद करने लगे | फिर वहां सभी ने पेट पूजा की और गाड़ी में आकर बैठ गए।
तभी थोड़ी देर बाद निम्मी ने जैसे ही लट्ठी को देखा उसे अजीब सा लगा । उसने मम्मी से कहा ," माँ देखिये तो इस लकड़ी का रंग बदल गया है । ये वो नहीं है ।" माँ बोली "ये वही है , तुझे वैसे ही लग रहा है । " निम्मी बोली ,"नहीं ऐसा लग रहा है किसी ने इस पर चमकीली छिड़क दी हो " । माँ बोलीं," तुझे वहम हो रहा है । कुछ ही समय बाद सुंदरबन आ गया । सभी जंगल देखने को उत्सुक थे। उन्होंने एक गाइड लिया और जंगल की और बढे । सभी हरे -भरे जंगल को देख कर उल्लासित थे । किसी-किसी पेड़ के पत्ते तो मनुष्य की लम्बाई के आकर के थे ।
तभी अचानक एक घटना घटी । जानिया उनके साथ नहीं थी । वे हैरान -परेशान उसे ढूंढने लगे और इतने बड़े जंगल में ढूढे भी तो कहां ढूंढें । निम्मी थोड़ा पीछे रह गई और थककर और एक पत्थर पर बैठ गई और लकड़ी से उसे साफ करने लगी । जैसे ही उसने लकड़ी को पत्थर से छुआ वह गोल-गोल घूमने लगी और निम्मी को लगा जैसे की वह उड़ रही है, साथ ही जो लकड़ी उसके हाथ में थी वो जादुई छड़ी की भांति दिखने लगी । फिर उसने उड़ते-उड़ते जानिया को ढून्ढ लिआ और उड़ते-उड़ते अपने मम्मी-पापा के पास ले गई । फिर वे सब जंगल घूम कर घर लौट आए । अगले दिन जानिया ने पूरी कहानी दोस्तों को सुनाई कैसे निम्मी ने उसको बचाया। अब जब भी कोई मुश्किल में होता तो जानिया अपनी जादुई छड़ी से उसकी मदद करती ।
तभी उसे पापा दिखे , उसे लगा पापा जल्दी मन जाएंगे , इसलिए इन्ही से बात की जाए । निम्मी बोलती है पापा मैं घर पर उक्ता गई हूँ क्यों न कहीं घूम कर आया जाए । पापा ने पूछा कहां जाना चाहोगी ? वो बोली सुंदरबन के जंगल चलें । पापा मान गए । अगले ही दिन जाने का प्लान बन गया । सुबह करीब 6 बजे घर के बाहर सब तैनात खड़े थे । निम्मी व जानिया तो ख़ुशी व उल्लास से भरे हुए थे , सबने रास्ते के लिए सामान भी जुटा लिआ था । साथ ही वहां जंगल में मदद के लिए एक लट्ठी भी रख ली थी । सभी गाड़ी में बैठे, सफर पर चल दिए । जैसे ही थोड़ी दूर पहुंचे जानिया को भूख लग गई । निम्मी को जैसे ही रास्ते में मैक्डोनाल्ड दिखा दोनों वहां जाने की जिद करने लगे | फिर वहां सभी ने पेट पूजा की और गाड़ी में आकर बैठ गए।
तभी थोड़ी देर बाद निम्मी ने जैसे ही लट्ठी को देखा उसे अजीब सा लगा । उसने मम्मी से कहा ," माँ देखिये तो इस लकड़ी का रंग बदल गया है । ये वो नहीं है ।" माँ बोली "ये वही है , तुझे वैसे ही लग रहा है । " निम्मी बोली ,"नहीं ऐसा लग रहा है किसी ने इस पर चमकीली छिड़क दी हो " । माँ बोलीं," तुझे वहम हो रहा है । कुछ ही समय बाद सुंदरबन आ गया । सभी जंगल देखने को उत्सुक थे। उन्होंने एक गाइड लिया और जंगल की और बढे । सभी हरे -भरे जंगल को देख कर उल्लासित थे । किसी-किसी पेड़ के पत्ते तो मनुष्य की लम्बाई के आकर के थे ।
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