नववर्ष किसी भी व्यक्ति के जीवन में आशा एवं उत्साह का नवीन प्रकाश लेकर आता है। सभी देशों एवं समुदायों में नववर्ष को बड़े उत्साह एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। नववर्ष का आगमन जीवन में नवीनता का सूचक होता है एवं व्यक्ति नववर्ष के मौके पर नवीन संकल्प के माध्यम से सफलता की ओर अग्रसर होने का लक्ष्य बनाता है। दुनिया के सभी समुदायों के द्वारा अपने स्थानीय रीति-रिवाजो एवं परम्पराओं पर आधारित नववर्ष मनाया जाता है। दुनिया के विभिन्न भागों में अलग-अलग प्रकार से नववर्ष मनाया जाता है, सभी समुदाय अलग-अलग तिथि एवं माह में अपना नववर्ष मनाते है।
इस प्रकार हिन्दू नववर्ष प्रत्येक वर्ष चैत्र माह से शुरू होता है। हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत पर आधारित है। 2080 के नव संवत्सर को 'पिंगल' नाम से जाना जाएगा। पंचांग के अनुसार, नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। साल 2023 में हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2080, पिंगल संवत्सर का स्वागत बुधवार 22 मार्च 2023 के दिन बुधवार को मनाया गया है। हिन्दू नव वर्ष को और भी कई नामों से जाना जाता है जैसे कि, संवत्सरारंभ, वर्षप्रतिपदा, विक्रम संवत् वर्षारंभ, गुडीपडवा, युगादि आदि। शास्त्रों में कुल 60 संवत्सर बताए गए हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार, हिन्दू नव वर्ष का पहला दिन जिस भी दिवस पर पड़ता है पूरा साल उस ग्रह का स्वामित्व माना जाता है। जैसे कि इस साल हिन्दू नव वर्ष बुधवार के दिन से शुरू हो रहा है। ऐसे में बुध ग्रह इस पूरे साल के स्वामी माने जाएंगे। मान्यता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही किया था।
हिन्दू नव वर्ष का इतिहास
हिन्दू नववर्ष की शुरुआत उज्जैन के महान शासक विक्रमादित्य द्वारा शकों को पराजित करने के उपलक्ष में 58 ई. पू. (58 B.C) में की गयी थी। वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया विक्रम संवत कैलेंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक गणना पर आधारित है। हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाने के पीछे ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, पौराणिक, प्राकृतिक एवं नैसर्गिक कारण कारण छिपे हुए है। हिन्दू नववर्ष हजारों वर्षों से हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण दिनों में शामिल रहा है। हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में नववर्ष को नवीनता का प्रतीक माना गया है एवं इस अवसर पर पूजा-पाठ एवं विभिन्न प्रकार के शुभ कार्यों को करने की परंपरा रही है। यह दिवस हिन्दू समुदाय में नवीन उत्साह का संचार करता है।
हिन्दू नववर्ष का महत्व और विशेषता
विक्रम सम्वत कैलेंडर के आधार पर मनाया जाने वाला हिन्दू नववर्ष की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक आधार पर काल की गणना करता है एवं विभिन्न खगोलीय घटनाओं की सटीक एवं प्रमाणिक जानकारी मुहैया करवाता है। देश में विभिन्न त्योहार, पर्व, व्रत एवं अन्य कार्यक्रमों के आयोजन भी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार किये जाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण अपनी विभूतियों के संदर्भ में बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं:- “बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।। (श्रीमद्भगवद्गीता – 10.35)। इसका अर्थ है, “सामों में बृहत्साम मैं हूं। छंदों में गायत्री छंद मैं हूं। मासों में अर्थात् महीनों में मार्ग शीर्ष मास मैं हूं और ऋतुओं में वसंतऋतु मैं हूं”।
सर्व ऋतुओं में बहार लाने वाली ऋतु है, वसंत ऋतु। इस काल में उत्साहवर्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है। शिशिर ऋतु में पेड़ों के पत्ते झड़ चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतु के आगमन से पेड़ों में कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं, पेड़-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं । यह पेड़-पौधों पर नए फल आने का समय होता है। इस समय चारों ओर रंग-बिरंगे सुन्दर फूल खिलने लगते है एवं पेड़ों की शाखाओं पर पक्षी गाने लगते हैं। इस समय पूरी प्रकृति ही नए रंग में रंगी हुई प्रतीत होती है। कोयल की कूक सुनाई देती है। खेतों में भी नई फसल लहलहाने लगती है एवं कृषकों के चेहरे पर मुस्कान दिखाई देने लगती है। चारों ओर बसंत ऋतु में जीवन की नवीनता दिखाई देने लगती है। ऐसे में प्रकृति भी हिन्दू नववर्ष का स्वागत करती हुई प्रतीत होती है। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण जी की विभूति स्वरूप वसंत ऋतु के आरंभ का यह दिन है। इसलिए चैत्र महीने से हिन्दू नववर्ष से ही देश में नवीन वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। इस तरह हम देखते हैं कि हिन्दू नव वर्ष को चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा के मनाया जाने के पीछे कुछ प्राकृतिक कारण भी हैं। हिन्दू नववर्ष का देश के करोड़ों हिन्दू समुदाय के लोगों के लिए खास महत्व है। नववर्ष के अवसर पर लोग अपने घरों में विभिन्न प्रकार के पूजा-पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठान करते हैं एवं नववर्ष के लिए नवीन संकल्प लेते हैं। इस अवसर पर सभी नक्षत्र अपने आदर्श स्वरूप में होते हैं, ऐसे में नववर्ष के अवसर पर सभी प्रकार के कार्य करना शुभ माना जाता है। जीवन की नवीनता का प्रतीक नववर्ष हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित करता है। साथ ही इस दिवस के सभी पहर को धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र माना जाता है, ऐसे में इस अवसर पर सभी कार्य फलदायी होते हैं। हिन्दू नव वर्ष अध्यात्म का केंद्र माना जाता है। मान्यता है कि हिन्दू नव वर्ष के पहले दिन ही प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था। हिन्दू नव वर्ष के पहले दिन ही श्री राम ने बाली का वध किया था। युधिष्ठिर भी इसी दिन राजा बने थे। इसी दिन से मां दुर्गा घर-घर में विराजती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। हिन्दू नव वर्ष के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने इस ब्रह्मांड और सृष्टि का सृजन किया था। इसलिए अंतरिक्ष या किसी भी वैज्ञानिक अनुसंधान में हिन्दू पंचांग को इंग्लिश कैलेंडर के मुकाबले ज्यादा महत्व दिया जाता है।
हिन्दू नव वर्ष से जुड़ी मान्यताएं
हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह के नवरात्र से होने के पीछे कुछ पौराणिक मान्यताएं भी हैं। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ के समय चैत्र नवरात्र के प्रथम दिन पर ही देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना करने का कार्यभार सौंपा था। इसलिए यह दिन सृष्टि के निर्माण का दिन माना जाता है। मान्यता है कि यह दिन समस्त जगत के आरंभ का दिन है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, इस तिथि पर ही देवी मां ने देवी-देवताओं के कार्यों का बंटवारा किया था और तत्पश्चात सभी ने अपना काम संभालते हुए सृष्टि के संचालन के लिए शक्ति और आशीर्वाद मांगा था। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा होने के पीछे सृष्टि रचयिता ब्रह्मदेव हैं। उन्होंने आज के दिन ही संसार की रचना का कार्य शुरु किया था और इसकी प्रेरणा भगवान नारायण को प्रदान की थी।
देवी पुराण में उल्लेख है कि सृष्टि के आरंभ से पूर्व अंधकार का साम्राज्य था। तब आदि शक्ति जगदंबा देवी अपने कूष्मांडा अवतार में भिन्न वनस्पतियों और दूसरी वस्तुओं को संरक्षित करते हुए सूर्य मंडल के मध्य व्याप्त थीं। जगत निर्माण के समय माता ने ही त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव की भी रचना की थी। देवी पुराण में यह भी लिखा है कि इसके बाद सत, रज और तम नामक गुणों से तीन देवियां यानि लक्ष्मी, सरस्वती और काली माता की उत्पत्ति हुई। आदिशक्ति की कृपा से ही ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी, देवी ने ही भगवान विष्णु को पालनहार और शिवजी को संहारकर्ता बनाया था। देवी की कृपा से ही सृष्टि निर्माण का कार्य संपूर्ण हुआ था, इसलिए सृष्टि के आरंभ की तिथि के दिन से नौ दिन तक मां जगदंबा के नौ स्वरूपों की पूजा करने की मान्यता है। देवी के सभी स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है और देवी से प्रार्थना की जाती है कि जिस तरह उन्होंने संसार की रचना का कार्य सफलता पूर्वक किया वैसे ही आने वाला यह नया संवत भी हम सभी के जीवन में खुशहाली लेकर आए। इस दिन से ही पंचांग की गणना भी की जाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था।
ऐसी भी मान्यता व परंपरा है कि हिंदू नववर्ष के पहले दिन घर के मुख्य द्वार से लेकर पूरे घर में हल्दी के पानी का छिड़काव करना चाहिए व घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनानी चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी आपके घर जरूर आती हैं। इसके साथ ही घर के वास्तु दोष, नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिल जाती है।
एक और लोक मान्यता के अनुसार जो बच्चे बुद्धि में कमजोर है या फिर जिन्हें बोलने में तकलीफ है, हिंदू नववर्ष के पहले दिन गणपति जी को बच्चे के हाथ से दूर्वा चढ़वाने और फिर इस दूर्वा को शहद में भिगोकर बच्चे की जीभ पर चटाने और बाद में दूर्वा बहते पानी में प्रवाहित करने से बुद्धि का विकास होता है और वाणी दोष खत्म होता है।
हिन्दू नववर्ष से जुड़े कुछ रोचक तथ्य व कहानियाँ
1. अनुमान के मुताबिक, करीब 1 अरब 14 करोड़ 58 लाख 85 हजार 123 साल पहले इस दिन ब्रह्मा जी द्वारा ब्रह्मांड निर्माण के कुछ समय पश्चात ही इस सुन्दर सृष्टि की रचना की गयी थी।
2. लंकापति रावण के विजय के अवसर पर इस दिवस पर अयोध्यावासियों ने अपने घरों पर भगवान राम के सम्मान में विजय पताका फहराई थी। इसके साथ ही प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है और युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
3. इसी दिन देवी दुर्गा की आराधना का नवरात्रि महापर्व प्रारंभ होता है। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है। सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
4. यह दिन सिक्खों के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया। न्याय प्रणेता महर्षि गौतम की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है।
5. राजा विक्रमादित्य ने शकों को परास्त कर भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना और विक्रमी संवत की स्थापना की। इस प्रकार राजा विक्रमादित्य के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
6. शालिवाहन राजा ने शत्रु पर विजय प्राप्त की और इस दिन से शालिवाहन पंचांग प्रारंभ किया और शक संवत् की शुरुआत हुई।
7. संघ संस्थापक प.पू.डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिन भी इसी दिन है।
8. आराध्य देव वरुणावतार भगवान झूलेलाल साईं का अवतरण दिवस भी मनाया जाता है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी। इस दिन भगवान श्रीराम ने बाली का वध किया था।
9. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन अयोध्या में श्रीरामजी का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया। इसके प्रतीक स्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुडी कहते हैं।
10. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
देश व धर्म अनुसार नव वर्ष के अन्य प्रकार
विश्वभर में नया साल मनाने का तरीका भी अलग-अलग है। सभी धर्मों में नया साल एक उत्सव की तरह अलग-अलग अंदाज में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। कोई नाच-गाकर तो कोई पूजा-अर्चना के साथ नए साल का स्वागत करता है। हर धर्म में नववर्ष की तिथि अलग मानी गई है।
चीन के लोग लूनर कैलेंडर के आधार पर, इस्लाम के अनुयायी हिजरी सम्वंत के आधार पर, पारसी नववर्ष नवरोज से, पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व से, जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से मनाए जाते हैं। जापानी नव वर्ष ‘गनतन-साईं’ या ‘ओषोगत्सू’ के नाम से भी जाना जाता है। महायान बौद्ध 7 जनवरी, प्राचीन स्कॉट में 11 जनवरी, वेल्स के इवान वैली में नव वर्ष 12 जनवरी, सोवियत रूस के रुढि़वादी चर्चों, आरमेनिया और रोम में नववर्ष 14 जनवरी को होता है। वहीं सेल्टिक, कोरिया, वियतनाम, तिब्बत, लेबनान और चीन में नव वर्ष 21 जनवरी को प्रारंभ होता है। प्राचीन आयरलैंड में नववर्ष 1 फरवरी को मनाया जाता है, तो प्राचीन रोम में 1 मार्च, को। भारत में नानक शाही कैलेण्डर का नव वर्ष 14 मार्च से शुरू होता है। इसके अतिरिक्त ईरान, प्राचीन रूस तथा भारत में बहाई, तेलुगू तथा जमशेदी (जोरोस्ट्रियन) का नया वर्ष 21 मार्च से शुरू होता है। प्राचीन ब्रिटेन में नव वर्ष 25 मार्च को प्रारंभ होता है। प्राचीन फ्रांस में एक अप्रैल से अपना नया साल प्रारंभ करने की परंपरा थी। यह दिन अप्रैल फूल के रुप में भी जाना जाता है। थाईलैंड, बर्मा, श्रीलंका, कम्बोडिया और लाओ के लोग 7 अप्रैल को बौद्ध नववर्ष मनाते हैं। वहीं कश्मीर के लोग अप्रैल में। भारत में वैशाखी के दिन, दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों, बंगलादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, कम्बोडिया, नेपाल, बंगाल, श्रीलंका व तमिल क्षेत्रों में, नया वर्ष 14 अप्रैल को मनाया जाता है। इसी दिन श्रीलंका का राष्ट्रीय नव वर्ष मनाया जाता है। सिखों का नया साल भी 14 अप्रैल को मनाया जाता है। बौद्ध धर्म के कुछ अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा के दिन 14 अप्रैल को नया साल मनाते हैं। असम में नववर्ष 14 अप्रैल को, पारसी अपना नववर्ष 22 अप्रैल को, तो बेबीलोनियन नव वर्ष 24 अप्रैल से शुरू होता है। प्राचीन ग्रीक में नव वर्ष 21 जून को मनाया जाता था। प्राचीन जर्मनी में नया साल 29 जून को मनाने की परंपरा थी और प्राचीन अमेरिका में 1 जुलाई को। इसी प्रकार आरमेनियन कैलेण्डर 9 जुलाई, 2011 से प्रारंभ होता है जबकि म्यांमार का नया साल 29 जुलाई से। इसी प्रकार हम देखते हैं कि हर देश व धर्म में नव वर्ष मनाने की अपनी अलग अलग तिथियाँ व परम्पराएं भी हैं।
पश्चिमी नव वर्ष
नव वर्ष उत्सव 5,000वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का यह त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था। जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी यही तिथि नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी। रोम के शासक जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष यानि ईसापूर्व 46 इस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था।
ईसाई नववर्ष
1 जनवरी से नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई। इसके कैलेंडर का नाम ग्रिगोरियन कैलेंडर है। जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर बनाया। तब से 1 जनवरी को नववर्ष मनाते हैं।
हिब्रू नव वर्ष
हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है।
पारसी नववर्ष : नवरोज से
पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव मनाया जाता है। 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने नवरोज मनाने की शुरुआत की थी।
पंजाबी नववर्ष
पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होली के दूसरे दिन से नए साल की शुरुआत मानी जाती है।
जैन नववर्ष
जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत भी कहा जाता है। इसी दिन से जैन लोग अपना नया साल मनाते हैं।
इस्लामी नव वर्ष
इस्लाम धर्म के कैलेंडर को हिजरी साल के नाम से जाना जाता है। इसका नववर्ष मोहर्रम माह के पहले दिन होता है। मौजूदा हिजरी संवत 1530 इस साल 30 दिसंबर को शुरू हुआ था। हिजरी कैलेंडर कर्बला की लड़ाई के पहले ही निर्धारित कर लिया गया था। मोहर्रम के दसवें दिन को आशूरा के रूप में जाना जाता है। इसी दिन पैगम्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन बगदाद के निकट कर्बला में शहीद हुए थे। हिजरी कैलेंडर के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इसमें चंद्रमा की घटती- बढ़ती चाल के अनुसार दिनों का संयोजन नहीं किया गया है। लिहाजा इसके महीने हर साल करीब 10 दिन पीछे खिसकते रहते हैं।
दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप :
दक्षिणी अफ्रीका के देशों में नए साल के दिन लोबिया के साबुत बीज और शलगम की पत्तियां खाने की प्रथा है। शलगम की पत्तियां रुपए का प्रतीक और लोबिया के बीज पैसों के प्रतीक माने जाते हैं।
स्पेन :
स्पेन में नए वर्ष की रात को 12 बजे के बाद ताजे अंगूर खाने की परंपरा है। उनके अनुसार ऐसा करने से वे सालभर स्वस्थ रहते हैं।
चीन :
चीन में 1 महीने पहले से ही नए साल की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। लोग अपने घरों में साफ-सफाई कर रंग-रोगन करवाते हैं। यहां नए वर्ष पर लाल रंग को बहुत शुभ माना जाता है इसलिए लोग इस दिन लाल रंग की ड्रेस पहनते हैं।
हिंदू नव वर्ष के भारत वर्ष में विभिन्न स्वरूप, परम्पराएं और त्योहार
हिन्दू नव वर्ष के आगमन के साथ और भी कई त्योहार अपना आगमन करते हैं। ये सभी त्योहार व उत्सव कहीं न कहीं नव वर्ष से जुड़े हुए हैं। जैसे नवरात्रि, दुर्गापूजा, दुर्गाष्टमी, रामनवमी, भगवान महावीर जयंती और अक्षय तृतीया । चैत्र माह और हिन्दू नव वर्ष का पहला त्यौहार नवरात्रि पड़ता है जिसमें 9 दिनों तक मां दुर्गा की पूर्ण श्रद्धा से पूजा की जाती है। नवरात्रि, दुर्गापूजा व दुर्गाष्टमी पर पश्चिमी बंगाल में बहुत बड़े स्तर पर आयोजन किए जाते हैं। नवरात्रि के दौरान अधिकतर लोग माता का जागरण व माता की चौकी का आयोजन करवाते हैं। गुजरात में नवरात्रि के दौरान अकसर डांडिया नृत्य का आयोजन किया जाता है।
साथ ही इस दिवस को संवत्सरारंभ, युगादी, गुडीपडवा, वसंत ऋतु आरम्भ आदि नामों से भी जाना जाता है। हिन्दू नववर्ष को महाराष्ट्र, गोवा और कोंकण क्षेत्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में उगादी, राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में थापना, जम्मू-कश्मीर में नवरेह एवं सिंधी क्षेत्र में चेती चाँद के नाम से जाना जाता है।
अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
चैत्र शुक्लादि:
यह विक्रम संवत के नववर्ष की शुरुआत को चिह्नित करता है जिसे वैदिक [हिंदू] कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है। सम्राट विक्रमादित्य ने जब शकों को हराया और एक नए युग का आह्वान किया तो उनकी देखरेख में खगोलविदों ने चंद्र-सौर प्रणाली के आधार पर एक नया कैलेंडर बनाया, जिसका अनुसरण भारत के उत्तरी क्षेत्रों में अभी भी किया जाता है। यह चैत्र (हिंदू कैलेंडर का पहला महीना) माह के ‘वर्द्धित चरण’ (जिसमें चंद्रमा का दृश्य पक्ष हर रात बड़ा होता जाता है) का पहला दिन होता है।
गुड़ी पड़वा और उगादि:
ये त्योहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित दक्कन क्षेत्र में लोगों द्वारा मनाए जाते हैं। दोनों त्योहारों के समारोहों में आम प्रथा है कि उत्सव का भोजन मीठे और कड़वे मिश्रण से तैयार किया जाता है। दक्षिण में बेवु-बेला नामक गुड़ (मीठा) और नीम (कड़वा) परोसा जाता है, जो यह दर्शाता है कि जीवन सुख और दुख दोनों का मिश्रण है। गुड़ी महाराष्ट्र के घरों में तैयार की जाने वाली एक गुड़िया है। गुड़ी बनाने के लिये बाँस की छड़ी को हरे या लाल ब्रोकेड से सजाया जाता है। इस गुड़ी को घर में या खिड़की/दरवाजे के बाहर सभी को दिखाने के लिये प्रमुखता से रखा जाता है।
उगादि के लिये घरों में दरवाजे आम के पत्तों से सजाए जाते हैं, जिन्हें कन्नड़ में तोरणालु या तोरण कहा जाता है।
चेटी चंड:
सिंधी ‘चेटी चंड’ को नववर्ष के रूप में मनाते हैं। चैत्र माह को सिंधी में 'चेत' कहा जाता है। यह दिन सिंधियों के संरक्षक संत उदयलाल/झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
नवरेह:
यह कश्मीर में मनाया जाने वाला चंद्र नववर्ष है। संस्कृत के शब्द 'नववर्ष' से 'नवरेह' शब्द की व्युत्पत्ति हुई है। यह चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आयोजित किया जाता है। इस दिन कश्मीरी पंडित चावल के एक कटोरे के दर्शन करते हैं, जिसे धन और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है।
बैसाखी:
इसे हिंदुओं और सिखों द्वारा मनाया जाने वाला बैसाखी भी कहा जाता है। यह हिंदू सौर नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। यह वर्ष 1699 में गुरु गोविंद सिंह के खालसा पंथ के गठन की याद दिलाता है। बैसाखी वह दिन था, जब औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारियों ने एक सभा में जलियाँवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया था, यह औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय आंदोलन की एक घटना थी।
विशु:
यह एक हिंदू त्योहार है जो भारत के केरल राज्य, कर्नाटक में तुलु नाडु क्षेत्र, केंद्रशासित प्रदेश पांडिचेरी का माहे ज़िला, तमिलनाडु के पड़ोसी क्षेत्र और उनके प्रवासी समुदाय में मनाया जाता है। यह त्योहार केरल में सौर कैलेंडर के नौवें महीने, मेदाम के पहले दिन को चिह्नित करता है। यह हमेशा ग्रेगोरियन कैलेंडर में अप्रैल के मध्य में 14 या 15 अप्रैल को हर वर्ष आता है।
पुथांडू:
इसे पुथुवरुडम या तमिल नववर्ष के रूप में भी जाना जाता है, यह तमिल कैलेंडर वर्ष का पहला दिन है और पारंपरिक रूप से एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार की तारीख तमिल महीने चिथिरई के पहले दिन के रूप में हिंदू कैलेंडर के सौर चक्र के साथ निर्धारित की जाती है। इसलिये यह ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर वर्ष 14 अप्रैल को आता है।
बोहाग बिहू:
बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू, जिसे हतबिहु (सात बिहू) भी कहा जाता है, असम के उत्तर-पूर्वी भारत और अन्य भागों में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक आदिवासी जातीय त्योहार है। यह असमिया नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। यह आमतौर पर अप्रैल के दूसरे सप्ताह में आता है, ऐतिहासिक रूप से यह फसल के समय को दर्शाता है।
इस समय देश में विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी संवत, फसली संवत, बांग्ला संवत, बौद्ध संवत, जैन संवत, खालसा संवत, तमिल संवत, मलयालम संवत, तेलुगु संवत आदि तमाम साल प्रचलित हैं। इनमें से हर एक के अपने अलग-अलग नववर्ष होते हैं। देश में सर्वाधिक प्रचलित संवत विक्रम और शक संवत है। यह संवत 58 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। इसी समय चैत्र नवरात्र प्रारंभ होता है। शक सवंत को शालीवाहन शक संवत के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि इसे शक सम्राट कनिष्क ने 78 ई. में शुरू किया था।
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