कैसी ये रुसवाई है
क्यूँ ये मायूसी छाई है
ऐसा क्या हुआ
जो ये अजीब सा सन्नाटा छाया है
क्यूँ मैं खुद में ही कहीं गुम हूँ
खुद से ही एक उदासी सी है
क्यूँ ये दुख का आलम सा है
ऐसा क्या हुआ कि कुछ उलझनें सी हैं
क्यों ये खुद में ही अजीब सी खामोशी फैली है
ना जाने क्यूँ कहाँ कब कैसे खो से गए हैं वो मेरे अपने अपार खुशी के पल
क्यूँ ये मायूसी छाई है
ऐसा क्या हुआ
जो ये अजीब सा सन्नाटा छाया है
क्यूँ मैं खुद में ही कहीं गुम हूँ
खुद से ही एक उदासी सी है
क्यूँ ये दुख का आलम सा है
ऐसा क्या हुआ कि कुछ उलझनें सी हैं
क्यों ये खुद में ही अजीब सी खामोशी फैली है
ना जाने क्यूँ कहाँ कब कैसे खो से गए हैं वो मेरे अपने अपार खुशी के पल