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Wednesday, 18 May 2016
Wednesday, 4 May 2016
Sunday, 1 May 2016
anything: सोशल मीडिया का आपसी संबंधों पर प्रभाव
anything: सोशल मीडिया का आपसी संबंधों पर प्रभाव: सोशल मीडिया का आपसी संबंधों पर प्रभाव सोशल मीडिया जिसका शाब्दिक अर्थ है सामाजिक माध्यम अर्थात वह माध्यम जहां हम सीधे-सीधे समाज से जु...
सोशल मीडिया का आपसी संबंधों पर प्रभाव
सोशल
मीडिया का आपसी संबंधों पर प्रभाव
सोशल मीडिया जिसका शाब्दिक अर्थ है
सामाजिक माध्यम अर्थात वह माध्यम जहां हम सीधे-सीधे समाज से जुडे रहते हैं। वैसे
भी अगर देखा जाए तो सोशल मीडिया हम सभी को बिना रोक-टोक के आसानी से लोगों से
जोडता है। जहां हम बहुत ही सरलता से अपने विचार, भावनाएं, रचनात्मक कार्य आदि अपने
मित्रों, सहपाठियों,
रिश्तेदारों, जानकारों, प्रशंसकों व अनुयायियों के साथ बांट सकते हैं। चाहे वे दूर
हों या पास , देश में हों या विदेश में हम उनसे आसानी से संचार कर सकते हैं। यह
हमें दूर बैठे अपने मित्रों से आसानी से बात करने का मौका भी देता हे।
प्राचीन काल में हम सभी इकट्ठे होकर चौपाल
या फिर कहीं किसी अड्डे पर सभी महिलाएं व बडे बुजुर्ग दिन भर की बातें किया करते
थे, ऐसा जान पडता है सोशल मीडिया भी वहीं से विकसित हुआ है। बस फर्क यह है कि ट्रेडिशनल
मीडिया ने डिजिटल रुप में सोशल मीडिया को जन्म दिया है। क्योंकि यहां भी हम अपनी
कम्युनिटी बनाते हैं। फेसबुक, वट्सएप, हाइक, आदि एप्स हमें ऑनलाइन कम्युनिटी यानि
ग्रुप्स आदि बनाने का स्थान प्रदान करते हैं । इसके अलावा सोशल मीडिया पर बहुत-सी
ऐसी नेटवर्किग साइट्स हैं जहां हम पर्सनल स्फेयर भी बना सकते हैं। यानि अपने
जानकारों से टैक्सटिंग, कॉलिंग व वीडियो कॉलिंग के जरिए बातें व समूह संचार भी कर
सकते हैं।
वर्तमान में युवा वर्ग इस ओर अत्यधिक
मात्रा में बढ रहा है। हर रोज सोशल मीडिया साइट्स व एप्स इस ओर नौजवानों का ध्यान
आकर्षित कर रहे हैं। संचार के अलावा धीरे-धीरे खरीददारी भी ऑनलाइन ही की जा रही
है। यदि आसपास हमारे साथ कोई भी बात करने वाला नहीं है तो सोशल मीडिया पर दूर बैठे
हमारे दोस्त जरूर हैं जिनसे हम बात कर सकते हैं और अपना अकेलापन दूर कर सकते हैं।
अगर किसी बात को सामने आकर व्यक्तिगत रूप में करने में मुश्किल आती है व शर्म आती
है तो यह बेहतर साधन है। किसी भी बुरी प्रथा व सामाजिक बुराई के खिलाफ अपनी आवाज
उठाने का सोशल मीडिया बहुत ही अच्छा साधन
है। लेकिन हर वस्तु का सकारात्मक पक्ष के
साथ-साथ नकारात्मक पक्ष भी होता है। इसी तरह सोशल
मीडिया के भी सुविधाओं के साथ नुकसान भी हैं। हम सभी यहां एक दूसरे से जुड़े होते
हैं, पर डिजिटल जुड़ाव व असल लगाव में बहुत फर्क है। हम दूर से झूठ को आसानी से सच
में तब्दील कर सकते हैं। जब तक हम परस्पर साथ रहकर व मिलकर बातचीत न कर लें वह बात
नहीं बनती। डिजिटली बात करने पर हमेशा हमारे बीच असुरक्षा की भावना बनी रहती है।
एक दूसरे की भावनाओं व पारस्परिक सम्बन्धों में मजबूती होना सोशल मीडिया पर
मुश्किल है। असल ज़िन्दगी के सम्बन्धों में समय लगता है पर एक दूसरे को जानने में
जादा मददगार होते हैं। सोशल मीडिया हमें रिश्तों की गहराई से दूर रखता है। धीरे-धीरे
हमारे समाज में रिश्तों के प्रति निकटता व मजबूती कम होती जा रही है। किसी व्यक्ति
के पास एक-दूसरे से मिलने जाने का वक्त ही नहीं है। हम विकास के शिखर पर तो चढ़ गए
हैं पर भावनाओं, आचरण, सद्बुद्धि, नैतिकता, सांस्कृतिक व सामाजिक मूल्यों व पारस्परिक सम्बन्धों का समय के अनुसार
हनन हो रहा है। हम मानसिक व शारीरिक रूप से गिरते जा रहे हैं। खासकर युवाओं पर
इसका गहरा प्रभाव पड रहा है। वे लगातार अपने कार्यों के प्रति एकाग्रता खोते जा
रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है हमारा डिजिटल होना अच्छा है पर हर वस्तु की सीमा
होती हैं। ऑनलाइन संचार दूरियों को काम करने का अच्छा साधन है पर हमारे रिश्तों की
नींव कमजोर पड़ती जा रही है। हम पास आने की बजाए दूर जाते जा रहे हैं।
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